Wednesday 21 October 2015

sachchi dastan

  किसी शायरने मौत को क्या खुब कहा है;

  जिंदगी मे २ मिनट कोई मेरे पास ना बैठा.?
             आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे...!

  कोई तौफा ना मिला आज तक.?
              और आज
  फुल-हि-फुल दिये जा रहे थे...!

  तरस गये थे हम किसी एक हाथ के लिये.?
     और आज कंधे पे कंधे दिये जा रहे थे...!

  दो कदम साथ चलने को तैयार न था कोई.?
और आज काफिला बन साथ चले जा रहे थे...!

 आज पता चला मुझे कि "मौत"
  कितनी हसिन होती है.?
                      कम्बख्त.....
    हम तो युहि 'जिंदगी' जिये जा रहे थे.....?

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